विचार मंथन
गुरु गोरखनाथ |
आयुर्वेदा से लेकर, एलोपेथी और होमोपैथी अन्य विधि उपचार आयुवेदा
वनस्पति उपचार विधि हमारे पूर्वज संत ऋषि महात्माओ गुरुओ द्वारा विकसित हुई है,इस
में प्रथम भूमि पशु बकरी से आयुर्वेदा उपचार विधि अपनाई गई, फिर इसके बाद अन्य जीव
जंतु पशु पक्षीयो से उपचार विधि को अपनाया गया,उसके बाद धीरे-धीरे आयुर्वेदा की
उत्पत्ति जन कल्याण के लिए विकसित हुई, इसी से तंत्र,मंत्र,यंत्र,ज्ञान शिक्षा
अनुभव एवं मंथन द्वारा तमाम रोगों पर उपचार निवारण प्रक्टिकल सिद्ध/पुरुषार्थ एवं
प्रक्टिकल प्रमाणित हुआ,
मिलती इसका कारण यह नहीं है कि संत ऋषि महात्मा या बैध,नीम,हकीम, झूठा है| इन सब
की सफलता देने वाला ईश्वर है| समाज में एक से बढकर एक ज्ञानी विद्यवान है| एवं
मंथन शील भी है| धर्म शास्त्र के अनुसार महाभारत के अभिनान्यु का पुत्र पारीक्षत की
माँ के गर्भ में मृत्यु हो गई थी
कर पारिक्षित के प्राणों की रक्षा की थी| उनके समय में धरातल पर सर्पो का भी वंश
रहता था, तक्ष नाग ने पारिक्षित को दंश कर उनकी मृत्यु हो गई थी, इस सन्दर्भ हेतु
आयुर्वेदा के जनक बैध धनंतरी कहे जाते थे, इनको सूचना से प्राण पारिक्षित उपचार के
लिए बुलावा भेजा गया, इस सन्दर्भ में धनंतरी अपने मार्ग से पारिक्षित राज नगरी की
और जा रहे थे कि तक्ष की नागिन मार्ग में सोने की छड़ी भूटान बन कर
मार्ग में पड़ी रही।
राजा को अपनी नगरी की और जाने से मार्ग
में गुटान गिर गई इस संदर्भ धनंतरी ने गुटान उठा कर कंधे पर रख ली थोड़ी दूरी पर
जाते ही नागिन ने दंश दीया, नागिन प्रकट हुई और कहने लगी तू स्वयं की जीवन रक्षा
कर उसके बाद परीक्षित के जीवन की रक्षा करना, इस मध्य बीच ईश्वर की विधि मारने वाला भी है, और
जीवन देने वाला भी है।
स्वयं शिव है। इसीलिए वैद्य डॉक्टर ईश्वर के मध्य बीच
कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते है। जबकि दाता नहीं जीवन दाता भक्ति माता
पिता स्वयंभूहै| अब आती हैं दवाई की लाभ और हानि का दाता भी शिव है। वैदिक
शास्त्रों के मुताबिक एक राजा की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई, वेद जी ने एक ऐसी दवा विकसित कर रखी थी
कि वह मृत्यु के मुख से प्राण बचा लाती थी।
अहंकार घमंड आ गया जिस के संदर्भ में वेद की चर्चा और प्रतिष्ठा संपूर्ण राजा की
नगरी में फैल चुकी थी, इस सन्दर्भ
हेतु उपचार के लिए सेनापति ने राजा वेद को बुलाया
गया, उपचार विधि की गई, इस उपरांत राजा के प्राण रक्षा नहीं हुई, इस कृत को राजा की नगरी के सभी संत्री गण
देख रहे थे, इस उपरांत
राजा की मृत्यु हुई, संत्रीयोने
वेद के प्राण रक्षा के लिए गुप्त मार्ग से निकाल दिया, वेद अपने अनुभव एवं मंथन उपचार विधि पर
अविश्वास का प्रश्चित करते-करते एक बावड़ी के समक्ष आ खड़े हुए, जैसे ही मृत्यु कर स्वयं को समाप्त करने
जाते हैं।
का परिचय दिया यही वह गोष्टी तुम्हारे द्वारा ही गई थी, वह दवा मेरे पास है
तुम्हारा ज्ञान अनुभव कहीं गलत नहीं है| इस संसार में प्राणी निर्धारित समय काल
अवधि तक ही जी सकता है,उससे अधिक नहीं जी सकता इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ता है। इसीलिए तुम प्राश्चित ना करो।इस संदर्भ
में बैध को महादेव ने दर्शन देकर जनकल्याण उपचार विधि शिक्षा मंत्र दिया।
1
अमृतवाणी:- ओम चिंता महा पापनी काट कलेजा
खाए ! बैध क्या करें कितनी दवा दे पछताए !!
2 जग रूठे तो
रूठे भगवान ना रूठे !
3 जिसे राम तारे उसे कौन मारे !
जिसे राम
मारे उसे कौन तारे !!
इस अनमोल
वाणी को याद कर शिकवा शिकायत की प्रश्नोत्तरी का कोई उत्तर नहीं है।
विधाता के
हाथ में है, जीवन मरण, यश, अपयश, मानव प्राणी ईश्वर का बनाया एक मिट्टी का पुतला है।
जैसा विधाता
का आदेश मिलता है वह वैसे ही करता है।
महात्मा
गांधी के तीन बंदर बनकर रहे।
बैधाचार्य
देवलाल पट्ठे
बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है गुरु जी आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आयुर्वेद के बारे में
धन्यवाद सुरेश