!! मुंह का लकवा उपचार!!

                                  !! मुंह का लकवा उपचार!!

आज के युग में हमारे पूर्वज ऋषि संत महात्माओं के गुण ज्ञान कर्म कला को किसी ने भी याद नहीं रखा।आज हम सब एलोपैथी होम्योपैथी आयुर्वेद वनस्पति को संपूर्ण तरह से भूल चुके हैं। इसका कारण हमने पूर्वजों के बताए गए जंगली जड़ी बूटी की वनस्पति की पहचान संपूर्ण तरह से भूल चुके हैं। यहां तक वैदिक शास्त्रीय द्वारा इनकी आने वाली संतानों को और शिष्यों को ज्ञान शिक्षा नहीं दी इसका एक कारण वर्ण वाद एवं इरशाद दोष पक्षपात भी है। हमेशा दर-दर जंगलों में भटकने वाले को समाज ने कभी सम्मान की नजरिया से नहीं देखा, उनके गुणों और अनुभव की कला शिक्षा को प्राप्त कर उनके साथ बड़ा धोखा एवं विश्वासघात किया है। आज बड़ी बड़ी कंपनी द्वारा उपचार विधि संचालित है।उन्ही संतो, ऋषि, महात्माओं बड़े बुजुर्गों की देन है,उपचार विधि आज भी समाज में बहुत से नई पीढ़ी की वर-वधू तमाम लोगों से और ग्रस्त आश्रम भूख से वंचित है। किसी को शारीरिक कमजोरी, संतान हीनता और मुंह का लकवा रोग होना, इन सभी का उपचार आयुर्वेदिक में ही है। जबकि एलोपैथी में लगभग से 10 से 15000 तक लगाने के उपरांत भी रोग ठीक होने की कोई गारंटी नहीं होती है। आज के समाज में लिख पढ़कर ग्रेजुएट अवश्य है। मगर मंथन शील नहीं जो डॉक्टर एमबीबीएस और एमडी सर्जिकल स्पेशलिस्ट योग्यता रखने वाले डॉक्टरों से कोई गारंटी की बात नहीं पूछता है। एक साधारण ऋषि मुनि संत, महात्मा, गृहस्थ आश्रमी बैध, नीम, हकीमों से समाज के विश्वसनीय प्रतिष्ठित व्यक्ति गारंटी मांगते हैं। इसी कारणों से समाज कल्याण सेवा भावनाएं और सेवा भाव दया धर्म को भूल चुके हैं। आज संपूर्ण कार्य सेवा या धन प्रदान करने से प्राप्ति होती है। समाज में किसी भी वैद्य या नीम हकीम दया उपचार की दवाई सामग्री विधि का शुल्क 500 से या 3000 तक रुपया मानता है, तो समाज के ज्ञानी और परिवार वालों का दिमाग इंटरनेट के जैसे काम करने लगता है। उपचार करता से तमाम तरह के दवा हेतु उपचार सामग्री के विषय में पूछता है। और उसको धरना देकर फ्री सेवा प्राप्त हो जाए। इनके रोजी रोजगार पैट पर वार करने वाले, जानकार लोग हैं। जिससे निर्धन वर्ग की उन्नति ना हो और समाज में प्रतिष्ठित नागरिक ना बन सके। यह शडयंत्र समाज में रहा है। आज मे उन तमाम विचारो और दोष भाव इसी को भूलकर आप के समक्ष मुंह के लकवा की वनस्पति चित्र सहित दर्शा रहा हूं यह वनस्पति बड़े बड़े जंगलों में पाई जाती हैं। हिमालयकी गोद में हरिद्वार ऋषिकेश और त्रयंबकेश्वर नासिक के पर्वतों पर पाई जाती है। इस वनस्पति का नाम ( खुन खुना) हैं। इसके नज़दीक से कोई भी प्राणी मानव से लेकर सभी प्राणी जानवर डर जाते हैं। इसलिए इस जड़ी बूटी को जानकार ही लाकर लाभ पाते है। यह दवा 15 दिन में रात दिन चार चार वक्त शहद से चाटते हैं। इसे शरीर में गर्मी आती है, और निष्क्रिय इंद्रियों में चेतना जागृत कर मुंह का लकवा पूर्ण तरह से ठीक हो जाता है। लाभ होने पर श्री वीर हनुमान चोला और यह करना होता है। यही रोगों के संकट हर्ता है।

मुंह के लकवा के लक्षण-मस्तिक की जीभ में सुन्नपन आधा खाने और पानी पीने की शक्ति छीण भोजन करने हेतु गटकने की शक्ति संपूर्ण तरह से छीण हो जाती है। सर के ऊपर से आधा हिस्सा शुन्य और चेतना हीन हो जाता है। यही रोग लक्षण स्वयं के द्वारा जांच करें। चिमटी लेने पर महसूस नहीं होता। सुई द्वारा चुभन करने पर दर्द और चुभन का असर नहीं होता है। यह रोग काफी दिनों से पेट लीवर एवं पौष्टिक काजू,किसमिस, अखरोट, बादाम, नारियल, इत्यादि पौष्टिक खानपान की कमी के कारण रोग उत्पन्न होता है। रोगी होने पर यह खाद्य असर नहीं करते हैं। चेतना जागृत होने पर काम करना शुरू कर दी है।

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