Pariwar Niyojan Niyantran परिवार नियोजन नियंत्रण
आज के युग में हम सभी भारत वासियों की जिम्मेदारी है कि परिवार जन्म शिशुओं पर नियंत्रण करना अति आवश्यक हो गया है। भारत सरकार ने तमाम परिवार नियोजन नियंत्रण के लिए तमाम सुविधा दे रखी है तब भी भारत सरकार परिवार नियोजन पर नियंत्रित पूर्ण तरह से सफल नहीं हो पाता है। इसका मूल्य कारण है। समाज में शिक्षा एवं ज्ञान मंथन हीनता की कमी के कारण समाज में और जनतंत्र का सहयोग ना करने का मूल कारण है। समाज में अनपढ़ की गलती का असर निर्धन वर्ग शिक्षा एवं ज्ञान और मंथन हीनों पर अधिक असर दिखाई देता है।
ज्ञानी संतो वाणी में कहां गया है। (अमृतवाणी) जिसकी जितनी मजा, उसकी इतनी बड़ी सजा। यानी भगवती का भोग अति दुखदाई भी है, तो अति सुखदाई भी है। इस भोग उपरांत श्री यानी कन्या और फल यानी पुत्र की प्राप्ति होती है। अधिकांश लिखे पढ़े बैध, पुराणों साहित्यो का अध्ययन करने वाले परिवार वंश प्रमुख मुखिया अपने जीवन शैली की नीति नियम कर्तव्य अनुभव समय शैली से शिक्षा लेकर और बड़ों एवं बुजुर्गों द्वारा माता-पिता दादा-दादी नाना-नानी इत्यादि रिश्ते नातों से गृहस्थ जीवन शिक्षा प्राप्त कर सुखी जीवन की नीव स्थापित करते हैं।
आज की भविष्य में नई युवा पीढ़ी धर्म शास्त्रों और गुरुजन माता पिता एवं अन्य महापुरुषों से ज्ञान अमृत वाणी से नसीहत नहीं लेते हैं। हमारे पूर्वजों ने कई बार समाज को ज्ञान मार्गदर्शन देकर नसीहत दी है।कोई नई पीढ़ी या युवा पीढ़ी अमल नहीं करतीहै | जिसके कारण मूर्खता से किया गया काम भोग से अत्यधिक संतान उत्पत्ति माता-पिता के जीवन मैं संकटों परेशानी और अर्थधन हीनता का जनसैलाब आता है। जिसके कारण पूर्ति ना होने पर उसका समाधान ना होने पर संपूर्ण जीवन दुखमय व्यतीत होता है। हमें बड़े बुजुर्गों का कहना है की सुखी वही रह सकता है जिसका परिवार शिशु नियंत्रण से शिक्षा नहीं लेते हैं। आज भोग की अति कर गरीब निर्धन की समाज में संताने अधिक होती है जिसका कारण जीवन में पालन-पोषण खानपान वस्त्र रोजी रोजगार शिक्षा इत्यादि से वंचित रह कर संपूर्ण जीवन भर दुख भोंगते हैं। और समय के अनुसार बाल बच्चों का विकास प्रतिबंध लग जाता है। जिसके कारण और रोजगार एवं धन की कमी और शिक्षा के कमी के कारण वैचारिक ज्ञान मंथन नहीं कर पाते हैं। सब कुछ ईश्वर भक्ति से चलता है ईश्वर भक्ति कर्म ही संपूर्ण समस्याओं का समाधान करता है। अधिकांश समाज में देखने को मिलता है कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाए। यह पंक्ति रामायण रचना से पूर्ण कही गई है, जो जिस वर्ग जाति वर्ण का है, वही काम करते आ रहा है, इनके जीवन में परिवर्तन तभी आया है, जिसने शिक्षा ज्ञान कर्म समय भक्ति के महत्व को समझा है। उन्हीं के जीवन में परिवर्तन आया है। आज भी देखने को मिलता है जो जिस वर्ण जाति में पैदा हुआ है जो वह काम करते आए हैं वही काम करके मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उनके परिवार वंश में परिवर्तन नजर नहीं आता है।
आज भी किसान एक रहता है, और मूर्खतावस से 10 से 12 संताने पैदा करके और मजदूरी की संख्या बढ़ा देता है। इसी प्रकार शुद्र वर्ण 64% अनुसूचित जातियों में 20% नौकरी कार्य लगे है।
बाकी 80%मजबूरी वर्ग स्वयं कार्य करके भरण पोषण करते हैं। इस संदर्भ हेतु बड़े-बड़े बातें एवं वादे करते हैं, जीत हासिल करने के बाद स्वत भूल जाते हैं। यही वर्षों युग युगांतर से चल रहा है, इसीलिए निर्धन शिक्षा हीनों को अभी से चेतन होकर जागृत होना चाहिए ताकि आने वाले समय घड़ी में आप की संताने आपकी नजरों के सामने भूख से, दवा से, धन से, लाचार होकर बिलखती शारीरिक रोगी और कष्टों से तड़प तड़प कर मृत्यु को प्राप्त होती स्वयं को नजर आएंगी, आज भी वक्त है कि अभी से चैतन्य हो जाए।
शारीरिक भोग प्राप्ति के पूर्व एवं बाद में पति पत्नी छै:छै: बूंद नीम तेल की पीले, परिवार नियोजन प्राकृतिक तौर से पूर्ण होता है, ना ही शारीरिक किसी प्रकार छती भी नहीं होती, और शुगर मोटापा परिवार शिशु पर नियंत्रण करता है|
!!हम दो हमारे दो!!
जनकल्याण हित में प्रयासरत है ।