!! सम्पूर्ण शिशु उत्पत्ति नियंत्रण !!

!! सम्पूर्ण शिशु उत्पत्ति नियंत्रण !!

!! नर/नारी ही उत्पत्ति जनसंख्या नियंत्रक है, स्वम विचार मंथन से हम ही समस्या है। हम ही  समाधान है !! 

आज के युग
मे ये मंत्र दोनों पर घर के मुखिया और गृह संचालित पर नियम नीति कर्तव्य लागू होता
है
|

इस अमृत
वाणी को प्रत्येक प्राणी किसी भी वर्ण जाति का हो उस पर प्रकृतिक नियति लागू होती
है

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वाणी –
जिसकी जितनी बड़ी मजा
, उसकी उतनी बड़ी सजा

नई पीड़ी की
युवा युवती काम भोग कामकला का भरपूर आनंद लेते है
| और आज विज्ञान के द्वारा कामभोग कामकला का आनंद और लुप्त उठाने के लिये
आयुर्वेदिक से लेकर एलोपैथिक अँग्रेजी दवा और होमोपैथी साबूदाने जैसी मीठी गोलियो
का खूब उपयोग कर स्वम के लिये दुख एवं समस्या स्वस्थ शरीर के लिये उत्पन्न कर तमाम
रोगो से पीड़ित रहते है
|

जैसे
पुरुषो और महिलाओ मे रोग उत्पन्न होते आ रहे है
|

जैसे घुटनो
एवं जोड़ो मे दर्द और अकड़न/महिलाओ मे कमर दर्द
, घुटनो मे दर्द, जोड़ो मे दर्द,
एवं नसो मे अकड़न और पेट मे दर्द और संतान हीनता महिलाओ के कोख से संबन्धित रोग
होते है
|

इन सभी का
उपचार एवं बैधिक पुरानो और आयुर्वेदा पुराणों मे तंत्र
,यंत्र,मंत्र, द्वारा सम्पूर्ण
समाधान है
| इसके उत्पत्ति दाता गुरु गोरख नाथ/बैध अश्विनी
कुमार/ और गुरु धनवंत्री श्री हरी स्वरूप दाता है
|

इनकी कृपा
माता पिता महादेव ॐ भगवती माँ सती की कृपा अति आवश्यक है

सम्पूर्ण
संसार देव स्वरूप देवी स्वरूप है
| इनकी उत्पत्ति
मानव/नर/नारी/उत्पत्ति है

 इन्हीं में देव दानव
भूत प्रेत कालखंड में इस संसार के
त्याग  करने के वक्त मृत्युलोक संसार त्याग कर जाते हैं| यही भूत भविष्य कालखंड
में चला जाता है।
जिसे हम वर्तमान
भविष्य
भूतकाल
 खंड समय घड़ी में प्रत्येक प्रवेश कर जाता है।

और परिवार वंश के लिए संसार यज्ञ पवित्र
से जन्म और बैकुंठ
,
त्रिलोक
 धाम का संस्कार कर क्षमा कर मोक्ष मुक्ति कर्म
धर्म अधर्म कर्मों से क्षमा माता-पिता
साक्षात  शिव सती है। इनकी कृपा आशीर्वाद से मनुष्य अपने द्वारा किया गया कर्म से
क्षमा माफी प्राप्त कर सकता है।

यही कामकला भोग जीवन में संतान पैदा कर जीवन में दरिद्रता
अज्ञानता अभाव के कारण स्वयं के लिए समस्या उत्पन्न करता है।
हमारे पूर्वज संत गुरु महात्मा संत द्वारा
जनकल्याण संबंध में मंत्रों द्वारा समाज को जागृत किया है
|

और समस्या पर
नियंत्रण करता भरता हरता स्वयं ईश्वर साक्षात स्वरूप मानव प्राणी नर नारी को बताया
गया है।
इसके लिए मनुष्य किसी
भी वर्ग एवं जाति का क्यों ना हो जिनके पास पुराणों शास्त्रों का ज्ञान नहीं उनको
संपूर्ण जीवन
मे कष्ट  रोग में एवं धन संपदा और साधना संपदा के अभाव के कारण तरहतरह से जीवन मे दुख भोगता है।

जो कि वह स्वयं उसका उत्पत्ति दाता है। इसीलिए परिवार के मुखिया और गृह संगिनी संचालिका
दोनों पर संतान उत्पत्ति सम्पूर्ण नियंत्रण कर्ता स्वम है
|

इन्हे ज्ञान मार्ग दर्शन देने की अति आवश्यकता है, परिवार
मे दो ही संताने महत्यपूर्ण है
|

इस से देश और प्रजा तंत्र, राजनैतिक
जिम्मेदारियो पर कम समस्या संकट होगा जो प्रकृतिक सृष्टि पर कम ज़िम्मेदारी को करने
मे हम सब सफल होंगे
| धन्यवाद

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