वनस्पति नीम के गुण

 वनस्पति नीम के गुण

Neem ka Ped

नीम वृक्ष संपूर्ण भारत में पाया जाता है इसकी वैदिक पूर्व काल से शारीरिक रोग उपचार में उपयोग होता आ रहा है, आज भी गांव, देहात, कस्बों, में नीम की छाल, पत्ती, फूल, फल, का और जड़ों का उपयोग होता है। पौराणिक ग्रंथों में देवदारू सोमरस के नाम से जाना जाता है। मौसम के अनुरूप इसकी तासीर और गुणवत्ता परिवर्तनशील है। हमारे पूर्वज घर परिवार में रोग ग्रस्त माता-पिता से लेकर बहू बेटा नाती पोते इत्यादि मौसम के अनुरूप बीमार होते थे,उनको इस नीम वृक्ष की संपूर्ण विधि शाक्या का उपयोग करते थे। जैसे रोग लक्षण के अनुरूप काम करता है।जैसे चर्म रोग खाज, खुजली, फोड़ा, फुंसी, और रक्त दूषित होना, अधिकांश खाने एवं पीने पर नियंत्रण ना होना, शराब तरल नशा पत्ती करने के कारण लीवर एवं आमाशय पाचन तंत्र खराब होना।इसके करण से काफी दिनों से लीवर में सूजन पेट में सूजन और मोटा पन पेट पर आना, खाना पान की भूख की कमी इसी के कारण रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे पीलिया होना, बुखार आना, गर्मी अधिक महसूस होना, यह पित्त लक्षण है मुंह में लार अधिक आना, इसकी वजह से समय पर भोजन ना करना है। शारीरिक मोटापा भी बढ़ जाता है। यह मोटापा और शुगर रोग डायबिटीज शुगर रक्त को संपूर्ण तरह से शुद्धीकरण करता है। इसमें किसी प्रकार संदेह शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। नीम के द्वारा स्वयं लाभ ले। स्वयं के कर्म अनुशासन आधार पर स्वयं के स्वास्थ्य कमी वैद्य डॉक्टर स्वयं हो, सिर्फ स्वयं के खानपान एवं लाभ हानि प्रैक्टिकल शोध चलती फिरती लेबोरेटरी स्वयं हो, सिर्फ जागृति की आवश्यकता है। अधिकांश मार्च के माह में संपूर्ण वनस्पति झड़ जाती है। जिसे हम हिंदी में चैत्र कहते हैं।चैत्र माह में गर्मी तेजी के कारण पूरे बदन में इतनी गर्मी उत्पन्न होती है कि बुखार का थर्मामीटर तक की वैल्यू अनगिनत हो जाती है, यह रोग उत्पत्ति दाता स्वयंभू स्वयं वीरभद्र के गण वात, पित्त, कफ, हस्तक्षेप द्वारा संसार को रोग पीड़ा से ग्रस्त करते हैं। इसी कारण से संपूर्ण सृष्टि में 12 महीने और चार ऋतु के अनुसार प्राकृतिक रोग उत्पन्न होते हैं। जिस की हानि धन होना और गरीबों को उठानी पड़ती है।

आओ नीम द्वारा लाभ प्राप्त करें।

चैत्र के माह में बुखार तेजी से आना। सर दर्द एवं बदन दर्द होना।

शारीरिक नसों में अकड़न आने पर तुरंत नीम की पत्ती को बारीक पीसकर पूरे शरीर पर मेहंदी की तरह लगाना चाहिए।और बारीक पिसी पत्ती को भगोना में रखकर कुछ अधिक पानी में मिश्रित कर पानी में पैर डूबाकर रखो, कम से कम एक एक घंटा उपयोग करें। ग्वारपाठा मिल जाए तो उसको नीम की पत्ती में पीसकर उबटन की तरह लगाएं।

यह संपूर्ण तरह शीतला माता बासौर/भृंगु रोग से मुक्ति मिलती है।

खांसी होने पर नीम की पत्ती को धोकर पत्ती को तोड़कर भगौने में डालकर एक गिलास पानी डालकर 5 से 10 मिनट तक चाय की तरह उबाल कर ठंडा होने के चाय पत्ती से छान ले, उसके उपरांत पिए थोड़ा-थोड़ा  कर दिन भर में समाप्त कर दें।

3 दिनों में संपूर्ण तरह से खांसी समाप्त हो जाती हैं,भूख भी खुलती है।

चर्म रोग और खून की खराबी एवं शुगर को भी संपूर्ण तरह से समाप्त करती हैं।

नीम पति के साथ मेथी दाना हरिद्वार ऋषिकेश जंगलों से प्राप्त कर मिश्रित कर काला में नमक मिलाकर पीने से मोटापा भी कम होता है। इसके संग में अमृती मदिरा नाशनी को नीम काढ़े में मिश्रित कर काढ़ा पीने से भांग, गांजा, शराब, तरल, नशापत्ती से मुक्ति मिलती है।

इस दवा काढ़ा या रस का उपयोग करने से पहले महाकाल भैरव देव शक्ति पीठ पर अवश्य चढ़ाएं।

इसके कृपा से नशा एवं रोगों और पित्र दोषों से भी मुक्ति मिलती है।

फोड़ा फुंसी में नीम पत्ती को या छाल को जलाकर भस्म तैयार करें, उसमें कपूर और नीम तेल मिश्रित करके जख्मों पर लगाएं, असाध्य रोग फोड़ा फुंसी से निजात मिल जाती है।

अन्य किसी और रोग उपचार संबंधी जानकारी देने हेतु प्रयासरत हैं।


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